धनीराम नंद(मस्ताना)
भूकेल, बसना
वाह रे गुटखा
तै कहां ले आय।
मनखे ल अपन
दीवाना बनाय।
तोर सुरता म देखव
खाना ल भुलाय।
अइसन का तैंह
जादू ग चलाय।
बड़े बिहनिया ले
तोला वो सोरियाय।
मुहूं म तोला चबा के
मनखे ह गोठियाय।
तोला पाए बर देखव
ओकर जियरा छटपटाय।
तोर जुगाड़ म खवैया
उधारी खाता चलाय।
मिले नहीं फ ायदा तभो
तोर पाछु मनखे किंजराय।
खाये नहीं भात घलो
सुवाद बने नहीं पाय।
मुंहू ओकर खुले नहीं
खाना मुश्किल हो जाय।
गुटखा खवैया सुघर दिखे नहीं
गोठियाय बर वो लजाय।
जेब होथे खाली जब
संगी ह ओला खवाय।
आरी पारी चले उधारी
अईसन संगी बनाय।
वाह रे गुटखा काबर तै आय।
नोनी बाबू सबो ल तैं
अपन रंग म रंगाय।