सुरेन्द्र प्रबुद्ध, अक्षरा, तोषगांव।
लेखनी में आ रही कंपकंपी लंबे समय के बाद लिखने के कारण है या महात्मा गांधी जैसे विराट व्यक्तित्व के बारे में उक्त शीर्षक देने के कारण है। जिससे जितनी भी विनम्रता और शालीनता की स्याही में डुबोकर लिखे जाने पर भी उससे रूक्ष कटाक्ष, व्यंग्य,विरोधाभास और अन्तर्भेदी चीत्कार का सत्य प्रतिध्वनित होता है। सत्य जो उनके जीवन का परम साध्य था और जिसके निरंतर प्रयोग करते रहने का उपक्रम भी रहा। सत्य उनके द्वारा प्रतिपादित व बहुमीमांसित अहिंसा के सिद्धांत से कहीं ज्यादा ऊपर था। खैर लेखक का जो भी निजी असमंजस हो लेकिन गांधी को लेकर उन महान अमेरिकी प्रतिभाओं के मन में कोई द्विविधा या संदेह नही है। जिनने विश्व मे महान अमेरिका(शक्तिशाली अमेरिका नही) की स्थापना में महती भूमिका निभाई है। अत: यहां ऐतिहासिक संदर्भ में कई अमेरिकियों के विचार व दृष्टिकोण का अध्ययन किया जाना सामयिक है जो भारतीयों के लिए प्रासंगिक और आवश्यक है। नीचे कई अमेरिकी नागरिकों के शब्द उदधृत है। पूछा जा सकता है कि अमेरिकियों के ही विचार क्यों… अन्य के क्यों नही? इसके पीछे देशी मानसिकता कारण है। यह स्वतंत्र भारत की वैचारिकी की सहज अनुगमन सुविधा प्रवृति है। स्वतंत्रता के तत्काल बाद के दशकों में भारतीय बुद्धजीवी ब्रिटिश अंगे्रजों का उदाहरण देते थे और भारतीय स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर लेते थे। अभी स्थिति बदली है कि ब्रिटिश के बदले अमेरिकी अंग्रेजों ने स्थान ले लिया है। जिसे सामाजिक परिदृश्य में आसानी से साक्षात्कार किया जाता है। अभी अमेरिका भारत का आदर्श(आइडल)है इसलिए उसके विचारों को प्राथमिकता दी गई है। सुप्रसिद्ध विचारक और लेखक लुई फिशर लिखते है भारत ने सदा ही अपना सर्वोत्तम दुनिया को दिया। यह वो धरती है जहां बुद्ध जन्म लेते हैं जिन्हे मानने वालों की संख्या करोड़ों में है। करोड़ों देश के बाहर तो मु_ी भर भीतर। कालांतर में यह मिट्टी दुनिया को गांधी जैसा दृष्टा सौंपती है लेकिन वे भी कहीं गुम हो जाते हैं। लुई से अलग मार्टिन को अध्ययन को ध्यान से पढ़ते हैं जो अमेरिका में नस्लभेद और रंगभेद के विरूद्ध योद्धा रहे। अपने काले लोगो(नीग्रोजाति) के सुरक्षा सम्मान और नागरिक अधिकारों के लिए सतत सक्रीय रहे। मार्टिन लूथर किंग एक गहन अध्येता थे जिन पर गांधी का प्रभाव स्पष्ट था। वे स्वीकार करते हैं बौद्धिक और नैतिक संतुष्टि जो मुझे बेंथम व मिल के उपयोगितावाद में, माक्र्स व लेनिन के क्रांतिकारी सिद्धांतों में, रूसों के प्रकृति की ओर प्रत्यावर्तन की अवधारणा व आशावाद में, नीत्से के अतिमानवतावादी दर्शन में नही मिल सकी, वो मैने गांधी के अहिंसावादी दर्शन में प्राप्त की। तीसरे व्यक्ति महान सामाजिक कार्यकर्ता सीजर चावेस के विचार पढ़ते हैं जो अमेरिका में नागरिकों के अधिकार आंदोलन में महानयक थे। वे कहते हैं महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक आंदोलन की मात्र चर्चा नही की बल्कि संसार को यह बताया कि कैसे अहिंसात्मक साधन हमे न्याय और मुक्ति जैसे साध्य के करीब लाते हैं। ये विगत शताब्दी के उत्तराद्ध में आए ऐतिहासिक विश£ेषणात्मक अध्ययन हैं। जहां महान वैज्ञानिक आईस्टाइन ने माना था कि आगामी पीढ़ी शायद ही विश्वास करेगी कि कभी इस दुनिया में हाड़ मांस का एक ऐसा आदमी था। वैैज्ञानिक गांधी के चमत्कारिक व्यक्तित्व व कृतित्व से अभिभूत थे जो उनके इस सीधे सादे कथन में झलकता है। अमेरिका जैसी महाशक्ति को अपनी धरती वियतनाम से पराजित व विस्थापित करने वाले महान क्रांतिकारी नेता हो स्वंय को गांधी के पटुशिष्य मानते थे। होची मिन्ह वियतनाम(एशिया) के राष्ट्राध्यक्ष बने जिन्हे देशवासी राष्ट्रपिता का सम्मान देते हैं। अंर्तरात्मा से उदगार व्यक्ति करते है मै और दूसरे लोग क्रांतिकारी होंगे लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महात्मा गांधी के शिष्य है इससे न कम न ज्यादा गांधी जी की सार्वजनीन लोकप्रियता व स्वीकृति विश्वव्यापी थी जो आगे बढक़र नई शताब्दी में भी जीवंत और व्यवहार्य है। विश्व भर के कई गणमान्य लेखक विचारक अध्येता दार्शनिक वैज्ञानिक समाजसेवी, राजनेता सहित असंख्य नागरिक गांधी के वृहत प्रभा मण्डल में आए और प्रभावित हुए। यह क्रम आज भी जारी है। तभी तो अमेरिकी प्रशासन में राष्ट्रपति के महामहिम व महाबली पद पर आसान नीग्रोमूल के प्रथम व्यक्ति बराक ओबामा को गांधी पर राय देनी नही पड़ी अपितु अपनी आंतरिक इच्छा प्रकट करते हैं- अगर मुझे विश्व के अब तक के महानायकों में से किसी एक के साथ भोजन करने का आमंत्रण मिला तो वे निश्चित ही गांधी जी है। जरा अकादमी क्षेत्र में गांधी की महत्ता की बानगी देखते हैं। हाल में अमेरिका में एक विश्वविख्यात पुस्तक आई है-मानवता का पुर्नगठन(रिंकंस्टक्शन आफ ह्यूमेनिटी) जिसकी ओर समस्त विज्ञजन का ध्यान गया है। विश्व में मानव यात्रा की अब तक की दूरी तक जिन जिन महापुरूषों ने मानवता को सजाने संवारने में अनुपम योगदान दिया है। उसका संकलन है जिसमें उनके व्यक्तिगत योगदानों का मूल्यांकन किया गया है। संकलक सारोकिन ने ग्रंथ मे गांधी दर्शन और चिंतन को अमर (डेथलेस) और मृत्युंजय(बियांड डेथ) निष्कर्ष में निकाला है। मार्टिन सुआरेज जैसे विद्वान एक दम स्पष्ट और निश्चिंत है कि अगर जीसस और बुद्ध की राह चाहिए तो गांधी को पहले समझ लिजिए। वे गांधी की आधुनिक राजनीति में प्रासंगिकता महत्ता व अनिवार्यता को रेंखाकित करते है- मैने मानवीय सभ्यता को संवारने वाले महापुरूषों की खोज शुरू की और जिस छवि से ज्यादा प्रभावित हुआ… वो महात्मा गांधी थे। साराशंत: गांधी जी छवि अमेरिका में इस तरह जन व्याप्ति पा रही है कि हिंसा से पीडि़त व व्यग्र अमेरिका महात्मा गांधी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान मरणोपरांत देदे तो आश्चर्य नही होना चाहिए। वे अहिंसा के महात्म्य को आत्मसात कर रहे हैं और हिंसा के कालमुखी विकराल दानव का सामना करने के लिए उसे ही सर्वोत्तम व सुरक्षित साधन बता रहे हैं। लेकिन भारत में क्या हो रहा है? जिस राष्ट्रीय कागजी मुद्रा नोटों पर हसते हुए गांधी जी छपे हुए हैं वहीं नोट करोड़ों की संख्या में देश के भीतर हरेक की नजर में हर दिन गुजर रहा है, हर हाथ से हर दूसरे तीसरे हाथ में अंतरित हो रहा है। जिसका मूल्य लगभग 130 करोड़ लोग जानते पहचानते और मानते आ रहे हैं.. उसी नोटों का निरंतर विश्व बाजार में अवमूल्यन हो रहा है। देश देख भर रहा है। अरबों खरबों का घोटाला, अरबो रूपयों का बट्टा, सभी गांधी छाप नोटों में है। नक्सली, अलगाववादी, तश्कर, अपराधी आदि की बेलौस जमानत इन्ही नोटों की गड्डी बांधकर देश के अमन चैन को कुचल रही है। देश चुप है भीतर ही भीतर उबल रहा है जिन कारणों से बुद्धत्व(बुद्धिज्म) को निर्वासन मिला था आज ढाई हजार वर्षों के अधिक समय में अभेद्य क्रूर और आक्रामक होकर देश में विद्यमान सक्रीय है जिससे गांधी विलोपित हो रहे हैं। जिस दुर्भाग्य से युद्ध को समझने में ऐतिहासिक भूल हुई उसी की अक्षम्य पुनरावृति भारत के वर्तमान के लिए असाध्य अभिशा बन सकती है। समय रहते गांधी को समझने और स्वयं चेतने की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो कि कल भारतवासी गांधी को जानने के लिए अमेरिका की यात्रा करेंगे। ऐसा समय बड़ा आत्मघाती होगा। गांधी जी की उपस्थिति 150 वीं जयंती के अवसर पर इस आसन्न अंधेरों को झांकना होगा और अपने जीवनक्रम में चरितार्थ करना होगा युग सापेक्षता के साथ साथ… अन्यथा गांधी को नंगा फकीर नाटा काला बौना करने वाले देश से ही लूट ले जाएंगे और उस नए माल को इस बाजार में नए संस्करण व आवरण के साथ कई गुना कीमत में बेचेंगे और भरपूर वसूलेंगे। हम आज मूक दर्शक है कल खरीददार हो जाएंगे।
और गांधी जी हंसते ही रह गए नोटो पर
- Published: 4 months ago on October 12, 2018
- By: admin
- Last Modified: October 12, 2018 @ 5:24 pm
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